विडंबना
तुलसी को जल दे रही , प्रियतम हित वह रोज ।
उधर पिया की चल रही , नव मृगनयनी खोज ।।
नव मृगनयनी खोज , वचन अब टूटे सारे ।
दैहिक सुख ही ध्येय , श्वान से कर्म हमारे ।
नारी पूजक देश , मारकर नित हुलसी को ।
कुलदेवी का ढोंग , मिले कब जल तुलसी को ।।
सतीश पाण्डेय