विज्ञान के विद्यार्थी का प्रेम-गीत
प्यार का केंद्र तो आप ही हो प्रिये,
मैं परिधि पर पड़ा कोई इक बिंदु हूँ।
जिंदगी है जहाँ वो धरा हो सनम,
तेरा फेरे लगाता हुआ इंदु हूँ।।
इक मिलन मार्ग पर बढ़ के आगे सनम,
आइए एक त्रिज्या बना दीजिए।।1।।
ले के मिलने की चाहत फिरूँ दर-ब-दर,
किंतु हसरत हुई अपनी पूरी नहीं।
मैं तो युग-युग से चलता रहा रात-दिन,
थक गया पर घटी अपनी दूरी नहीं।।
चल कदम चार अब प्यार की राह में,
आइए अब ये दूरी घटा दीजिए।।2।।
व्यास होगा सलोना वो बतला रहे,
आप से हो के जिस दिन गुजर जाऊँगा।
अभिदिशित रह निरंतर नयी राह से,
फिर परिधि मार्ग पर आ के चढ़ जाऊँगा।।
भय भगे और मेरा मनोबल बढ़े,
चाशनी हौसले की चटा दीजिए।।3।।
कोई रेखा आ तिर्यक जो बाँटे हमें,
कामना है, हमारा बृहद खंड हो।
आपके बिन हमारा गुजारा नहीं,
क्यों ये चाहूँ कि जीवन मेरा झंड हो।।
आपके बिन हमें और जीना नहीं,
सिर ये धड़ से हमारा कटा दीजिए।।4।।
पिंड कृत्रिम लगाते हों फेरे भले,
पूर्ण कर सकता है कोई सपना कहाँ।
नेचुरल हूँ सनम, और बस आपका,
आप जैसा भी है कोई अपना कहाँ।।
एक दूजै को हम हैं अकेले सनम,
थामिए हाथ जग को जता दीजिए।।5।।
छोड़िए सूर्य को, मैं कहूँ क्यों भला,
बस उन्हीं से हमारी ये औकात है।
किस तरह से निभेगी विचारें सनम,
आप जैसे उन्हें और भी सात हैं।।
मेरा जीवन सनम आप ही से तो है,
जी जो चाहे समर्थन हटा दीजिए।।6।।
आपको भर नजर जो निहारूँ कभी
ज्वार-भाटा बताते, छुपा प्यार है।
देखकर के मुझे यूँ उफनना तेरा,
लगता मिलने को बेकल मेरा यार है।
प्यार हूँ आपका, मैं पराया नहीं,
अब नहीं आँख में आर्द्रता दीजिए।।7।।