विजय
विजय मिले जब काम में, पाता मानस मान
करती किरपा शारदे , बढ़ती मानव शान
सीख सदा इतिहास दे , होती असत्य हार
होकर बेबस सत्य जब ,करता कटु प्रहार
हरण हुई जब जानकी , पाती रावन कैद
करता संहार तीर तब , नाभि लंकेश भेद
लीला यह भगवान की , खेते केवट नाव
पार लगे भगवान तब , पर मुख नाहीं ताव
त्रिलोकी नाथ है वो , करे नाश जो पाप
ले भू पर अवतार जो , दूर करे संताप
मारा रावन राम ने , हो न धर्म की हानि ।
पूरा कुल तर गया , हरेक मुख यह बानि
जीवन का जो मर्म दे , राम चरित का सार
प्रभू नाम स्मरण से , हो भव सागर पार