विजया घनाक्षरी
विजया घनाक्षरी- घनाक्षरी छंद के इस भेद में कुल 32 वर्ण होते हैं। 8,8,8,8 वर्णों पर यति का प्रयोग होता है और प्रत्येक यति के अंत में नगण अनिवार्यतः प्रयोग किया जाता है।
(1)
बजें चूड़ियाँ खनन,घूमे सजनी मगन,
करे घर को चमन,लगे दिल में अगन।
रूप ढाए है कहर,उठे मन में लहर,
दूरी लगे है जहर,लगी ऐसी है लगन।
लगी जब से भनक,सास गई है सनक,
लुप्त हँसी में खनक,रोएँ बैठके सजन।
मुझे नहीं है खबर,हुआ प्यार का असर,
चलें कौन सी डगर,मिले धरा से गगन।।
(2)
बनें आओ तो सदय,लिये पावन हृदय,
करें सभी का उदय,यही असली डगर।
बहे प्रेम की पवन,देश बनेगा चमन,
रहे सबमें अमन,भरे आस की गगर।
छोड़ सारे दें भरम,करें केवल करम,
नहीं कोई हो शरम,कहें कभी न मगर।
दूर सारे हों दरप,मिटे धर्म की झड़प,
जहाँ पीड़ा न तड़प,शुभ्र ऐसा हो नगर।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय