विजया घनाक्षरी (रावण मंदोदरी संवाद)
विजया घनाक्षरी ÷
32 वर्ण 8-8-8-8 पर यति लघुगुरू अनिवार्य तुकान्त सहित ।
मंदोदरी रावण
कहाँ से भूल में परे, कलंक से भी न डरे,
गुमान हिय में भरे,कदर खोई मान की।
वानर पार पा गया,समुद्र लाँघ आ गया,
अशोक बाग खा गया, फिकर करो हान की।
जलाने योजना रची, पुकार लंक में मची,
बचाई शाख न बची,सभी को परी प्रान की ।
पुलस्त कुल कान की,मिटी है बात शान की,
यही है गली ज्ञान की,लौटा दो अभी जानकी।
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रावण मंदोदरी
विजया घनाक्षरी
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नारी स्वभाव से डरे,हमेशा बुद्धि से परे,
कायर वीर को करे, शत्रु की कीर्ति गान की।
जो मैं चलूँ कँपे जमी,जहान में दिखें हमीं,
निकाले व्यर्थ ही कमी,रावण बलवान की।
वीरता के नभ तले, लड़ाई कैसी भी चले।
न दाल राम की गले,क्षमा नहीं है शान की।
सेना ले जातुधान की,चुनौती घमासान की।
लगाऊँ बाजी जान की,पै दूँगा नहीं जानकी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर(म0प्र0)