विजयदशमी
विजयदशमी
अधिक अहम घातक बहुत,कितना भी हो ज्ञान।
सोच दशानन की दशा,समझो सकल विधान।।
रावण ज्ञानी था बहुत,उचित बना था साज।
भाव अहम कारण बना, छिने प्राण अरु ताज।।
अहम अधिक जब उर बढ़े, पनपें गलत विचार।
ज्ञान बुद्धि मंदिम पड़े,बदले तब व्यवहार।।
बिन समझे सब सार को,करे मनुज कटु कर्म।
दिखता उसको है नहीं,सही गलत का मर्म।।
अहमी रावण ने किया,बहुत गलत ही काज।
माँ सीता को हर लिया,त्याग मान अरु लाज।।
दूत भेज श्री राम ने,किया प्रथम आगाह।
रावण निज जिद छोड़ दो,त्यागो सीता चाह।।
सीता मेरी प्राण है,वापस करो विधान।
सर्वोचित है पंथ यह,रखो स्वयं का मान।।
अहम अंध रावण किया, बिलकुल नहीं विचार।
हमला करके दूत पर,दिखलाया निज सार।।
विगुल युद्ध का तब बजा, पहुँचे रण में राम।
मिटे असुर दर्पी सभी,पहुँचे यम के धाम।।
जीत राम की हो गई,हर्षित हुआ समाज।
अहमी रावण मिट गया,मिटा अहम का राज।।
वर्षगांठ उस जीत की,करते हम सब याद।
पुतला रावण का जला,करते हर्षित नाद।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम