विचारणीय…
नमस्कार सभी को…आज मन में एक विचार आया है… आप सबसे साझा करना चाहती हूँ… मेरा निवेदन है कृपया मेरी किसी बात को अन्यथा ना लें ?…
मुझे बचपन का एक किस्सा याद है… जब मेरी स्कूल में क्रिश्चियन मिशनरियों के द्वारा ईसाई धर्म से संबंधित वस्तुएं मुफ्त में बांटी जा रही थी… सभी बच्चों ने हंसते-हंसते उन चीजों को खुशी-खुशी लिया और उन किताबों को पढ़ा… पढ़कर के सब खुश और प्रभावित हुए, क्योंकि बालमन पर कोई भी छाप अमिट होती है। फिर धीरे-धीरे से जुड़ी हुई बातें पढ़ने को मिली। परंतु साथ-साथ यह भी चलता रहा हिंदू धर्म में क्या कुरीतियाँ है। कहीं भी हिंदुओं के श्रेष्ठ उदाहरण बहुत ही गौण रूप में दिए हुए होते हैं। जो शिक्षा हम देते हैं… भविष्य में वैसा ही समाज हमें प्राप्त होता है। तुलनात्मक अध्ययन अत्यंत आवश्यक है…. परंतु तुलना हो निष्पक्ष हो यह भी आवश्यक है। मैं भारतीय हूँ… हिंदू हूँ… इस बात पर मुझे गर्व होता है। जब मैं बच्चों को पढ़ाती हूँ तो उन्हें निष्पक्ष रहना सिखाती हूँ… परंतु मुझे इस बात को देखकर अत्यंत खेद होता है… इस्लाम कट्टरता से इस्लाम का प्रचार प्रसार करता है… ईसाई कट्टरता से ईसाइयत का प्रचार प्रसार करते हैं… और हिंदू धर्म जो कि सनातन है, श्रेष्ठ है, सर्वोत्तम है, वैज्ञानिक है … की बात जब आती है तो कुरीतियां पढ़ाई जाती है… क्षमा करें… परंतु यह दायित्व हमारा है कि हम अपने बच्चों को निष्पक्ष होकर यह सिखाएं वास्तविकता में श्रेष्ठ क्या है??? पहले देश फिर देशवासी…. सर्वधर्म समभाव… बहुत अच्छी बात है किंतु जनक, जनक होता है… सनातन धर्म जनक है जो जीवन को सदैव सही दिशा में संचालित करने की शिष्ट एवं श्रेष्ठ प्रेरणा देता है…. सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि हम खुशी-खुशी ईद और क्रिसमस मनाते हैं परंतु अपने बच्चों को संस्कृति और संस्कृत के दो श्लोक भी नहीं सिखाते हैं। विषय विचारणीय है…. परंतु दायित्व निर्वहन करने का समय है… ???
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’