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22 Aug 2023 · 2 min read

विगत स्मृतियां

बचपन की वो स्मृतियां सुहानी
भला कैसे कोई भूल सकता है
अनकही वे बातें पुरानी
भला कैसे कोई भूल सकता है
गुजरता है वो जब भी उन गलियों से
यादें हरदम घिर आती हैं
वो खिड़की पे बैठा मासूम सा चेहरा
भला कैसे कोई भूल सकता है

साथ महज दो वर्षों का था
अटूट प्रेम की थी शुरुआत
मिलते थे रोजाना दोनों
कोपलें प्रेम की खिलती थीं
फिर काल ने अपना चक्र चलाया
विदा होने का वक्त भी आया
जीवन को एक नई दिशा देने को
मन ही मन एक दूजे को समझाया

वक्त का पहिया कब रुकना था
चलता ही रहा साल दर साल
और इधर ये दोनों भी रम गए
पूरा करने अपना सपनो का जाल
अपना भविष्य बनाने खातिर
दोनों रहे बेखबर एक दूजे से
हंसते खेलते हुए उलझ गए दोनों
इस दुनिया के भ्रमित झमेले से

शनै: शनै: समय बीत रहा था
और दशक तीन व्यतीत हुए
वे दोनों भी अपनी-अपनी घर गृहस्थी
और घर संसार में लीन हुए
समय के चक्कर ने जाने कब
यादों को नेपथ्य में जैसे ढकेल दिया
उन दोनों को एक दूजे से कर जुदा
भिन्न शहर में लाकर छोड़ दिया

एक दिन हवाओं का रुख पुनः अनुकूल हुआ
अंकुर प्रेम का दोनो में फिर से स्फुटित हुआ
वर्षों से अब तक बिछड़ा था जिनसे
मित्रों के बीच फिर उसका प्रवेश हुआ
पाते ही साथ मित्रों का जिंदगी जैसे बदल गई
तीन दशकों की यादें फिर से एकदम ताजा हो गईं
वक्त फिर से पंख लगा कर उड़ने लगा
पाकर साथ एक दूजे का
जीवन भी जैसे खिलने लगा…

जीवन भी जैसे खिलने लगा…

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Books from इंजी. संजय श्रीवास्तव
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