विकास
तकनीकी विकास हो रहा है नैतिकता की कीमत पर,
दयाभाव उभरता है मानवता की किस्मत पर.
मानवीय नैतिक मूल्य रसातल में जा रहे हैं,
जो मशीन के लिए सही हैं वो मानक मूल्य अपनाये जा रहे हैं.
मानव दिन ब दिन संवेदन हीन हो रहा है,
जैसे मानव, मानव नहीं रहा मशीन हो रहा है.
दूसरों के अवगुणों को खोजने में लगा है,
अपने बारे में तो अभी तक रति भर भी नहीं जगा है.
कैसी विडंबना है कि खुद को ही नहीं पहचानता है,
और दंभ है कि सारे जहाँ को जानता है.