विकल्प
न सिया विलाप से, न जटायु युद्ध से।
मंदोदरी के प्रेम न माल्यवान प्रबुद्ध से।।
न तो लंका दहन से, न पुत्र के हनन से।
पुत्र के सलाह से, न भाई विभीषण से।।
परिजनों के वाद से, न अंगद संवाद से।
यश कीर्ति ही बनी थी, धर्म के विवाद से।।
न परिजनों के नाश से, न विश्व के उपहास से।
है कौन रोक सकता, उसको भला विनाश से।।
वेद शास्त्र ज्ञान पर, लोभ दंभ काम छा गया।
धर्म की मर्यादा हेतु, अयोध्या का राम आगया।।
ऐसे मन मन्तव्यों का, ‘संजय’ इलाज बस वध है।
अहंकार सिर चढ़ जाए, तो विकल्प बस युद्ध है।।
जै सियाराम