Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Jul 2021 · 4 min read

विकलांगता

बात उन दिनों की है ,मुझे विकलांग प्रतियोगिता में कुछ जिम्मेदारी दी गई प्रतियोगिता 10:30 से प्रारंभ होने वाली थी ।लेकिन शुरू 1:00 बजे से हुई, मै और मेरा बेटा 10:00बजे ही पहुंच गए ,जाकर देखा कुर्सियां जमाई जा रहीं हैं सब व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त है कुछ दिव्यांग बच्चे भी आ गए। मै बैठी बैठी उन्हें ही देखती रही तरह तरह के दिव्यांग बच्चे मन कुछ व्यथित सा हो उठा ।तभी देखा एक पिता अपने बच्चे शायद छटवी या सातवीं में पढ़ता होगा ।आधी आंखें खुली सी मुंह खुला सा का अपने गमछे से आंख मुंह पोछी और कहीं चल दिया,मुझे लगा कि वह बच्चे को बहुत चाहते होंगे हर मां बाप को अपने बच्चे से बेहद प्रेम होता है उन्हें भी है लेकिन वे ऐसे बच्चे की देखभाल कैसे करते होंगे ,मेरे मन में यही उथल पुथल चल रही थी कि तभी एक पिता अत्याधिक दिव्यांग बच्चे को अपनी गोदी में उठाए हुए लेकर आ गए। तभी एम आर सी ने बताया कि ऐसे बच्चों को नही बुलाया गया है ।मै उसके पिता को देखती और उस बच्चे को बार बार देखती और मन ही मन में नमन करती, कि वह कितने निः स्वार्थ भाव से अपने बच्चे को संभाल रहे है ।तभी एम आर सी महोदय ने मुझे रंगोली प्रतियोगिता में सहयोग करने के लिए बुलाया मै वहां चली गई, उसमें भाग लेने वाली बच्चियां बडी उत्साहित थीं और लड़कों ने भी बनाई तभी आखिरी में एक लड़की आई ,और उसने सुंदर रंगोली बना दी ।उसके व्यवहार में बड़ी फुर्ती थी, उसे सुनाई नही देता न ही बोल पाती थी लेकिन उसके व्यवहार से कहीं ऐसा प्रतीत नहीं हुआ वह इशारे को बहुत फुर्ती से समझ लेती थी ।इसके बाद मेंहदी प्रतियोगिता हुई, जहां मै तैनात थी मुझे उनका चयन करना था प्रथम द्वितीय व तृतीय मैने सभी के द्वारा लगाई गई मेंहदी देखी ,एक लड़की बहुत सफाई से मेंहदी लगा रही थी नाम पूछा तो नही बता पाई, मैने सोचा शायद डर रही है तभी मुझे याद आया कि, मैं दिव्यांग बच्चों के बीच हूं तो पता चला कि उसे सुनाई ही नहीं देता है, न ही बोल पाती है, मन बहुत व्यथित हो गया लगभग सभी बच्चियां ऐसी ही थीं ।तभी उस लड़की के पिता आए ,उन्होंने उसका नाम बताया तभी भोजन के लिए बुलाया गया वह उत्साही लडकी भी भोजन करने लगी, वह नमकीन ही खाए जा रही थी मैंने पुरी की ओर इशारा किया ,तो उसने इशारे से मुझे भी आश्वस्त कर दिया, कि अभी खा लूंगी तभी एक लड़के की मां वहां आ गई मैंने पूछा कि कुछ कार्य है क्या तो उन्होंने नहीं बेटे को देखने आई थी वही लड़का जिसे देखकर मेरा बेटा भी कुछ परेशान सा हो गया वह लड़का बस, यूं ही दरवाज़े से सटा खड़ा था कुछ देर से, उस लड़के को कुछ समझ ही नही पड़ रहा था कि वह यहां क्यूं लाया गया ,?जो पूछा जाता हां में सिर हिला देता। बेटा बोला कि उसे कुर्सी पर बैठा देता हूं, और उसे लेने चला गया लेकिन मेरा मन तो उसकी मां में ही अटक गया, कि मा का दिल ही ऐसा होता है जो ऐसे बेटे को भी देखने चली आई कि पता नही बेटा वहां क्या कर रहा होगा ,मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मै हूं यहां आप आराम से कुर्सी पर बैठ जाएं, और वे चली गई ।अब दौड़ की बारी थी सभी बच्चे कतार में खड़े हो गए और अपनी पूरी कौशिश से दौड़े पूरा आनंद लिया सभी बच्चों ने, अंत में सभी को पुरस्कार वितरित किए गए दौड़ में प्रथम आने वाले आदिल को जब ट्रॉफी मिली तो देखा ,कि वह साथ में एक वास्ता भी टांगे हुए है उसके शिक्षक ने बताया कि वह हमेशा टांगे रहता है जब उसे एक प्रतियोगिता में बाहर ले गए तब भी टांगे हुए था । शिक्षक ने जब आश्वासन दिया कि मैं तुम्हें वास्ता ज्यों का त्यों वापिस दूंगा वास्ता उतार दो तब उसने दिया ,उसकी जीत से आदिल के सहपाठी व मोहल्ला पड़ौस के बच्चों ने जश्न जैसा माहौल बना दिया सभी आदिल आदिल कहते हुए व खूब हल्ला करते हुए उसे घर ले गए सभी अतिथि व शिक्षक बेहद ख़ुश हुए यह नजारा देखकर ,बड़ी देर तक उनकी आवाज सुनाई देती रही सभी बच्चों को उनकी जीत के अनुरूप पुरस्कार वितरित किए गए। लेकिन मेरा मन कुछ बोझिल सा हो गया था। इस वाकया से कि मेंहदी प्रतियोगिता में नामो के चयन में कुछ फेर बदल कर दिया गया ,साथ में जिन मैडम की ड्यूटी थी ,उन्होंने भरे हुए हाथ देखे और मैंने मेंहदी की कोन चलाने के तरीके को लेकिन किन्हीं कारणों से मै मूक बनी रही शायद उस समय मैं भी एक दिव्यांग ही थी जो चाह कर भी कुछ कर ना पाई।,

3 Likes · 4 Comments · 485 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
Vinit kumar
स्वतंत्रता दिवस की पावन बेला
स्वतंत्रता दिवस की पावन बेला
Santosh kumar Miri
कोशिश करना छोरो मत,
कोशिश करना छोरो मत,
Ranjeet kumar patre
बनी दुलहन अवध नगरी, सियावर राम आए हैं।
बनी दुलहन अवध नगरी, सियावर राम आए हैं।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मेरी मोमबत्ती तुम।
मेरी मोमबत्ती तुम।
Rj Anand Prajapati
दर्द की धुन
दर्द की धुन
Sangeeta Beniwal
खामोश अवशेष ....
खामोश अवशेष ....
sushil sarna
दोहा छंद ! सावन बरसा झूम के ,
दोहा छंद ! सावन बरसा झूम के ,
Neelofar Khan
अपने अपने की जरूरत के हिसाब से अपने अंदर वो बदलाव आदतो और मा
अपने अपने की जरूरत के हिसाब से अपने अंदर वो बदलाव आदतो और मा
पूर्वार्थ
"गप्प मारने" के लिए घर ही काफ़ी हो, तो मीलों दूर क्या जाना...
*प्रणय*
चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल
चलते-फिरते लिखी गई है,ग़ज़ल
Shweta Soni
इंसान की इंसानियत मर चुकी आज है
इंसान की इंसानियत मर चुकी आज है
प्रेमदास वसु सुरेखा
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं
Neeraj Agarwal
आंखों में भरी यादें है
आंखों में भरी यादें है
Rekha khichi
अच्छा होगा
अच्छा होगा
Madhuyanka Raj
वाह भाई वाह
वाह भाई वाह
Dr Mukesh 'Aseemit'
स्क्रीनशॉट बटन
स्क्रीनशॉट बटन
Karuna Goswami
"सच्ची मोहब्बत के बगैर"
Dr. Kishan tandon kranti
बहुत जरूरी है एक शीतल छाया
बहुत जरूरी है एक शीतल छाया
Pratibha Pandey
मैं क्या जानूं क्या होता है किसी एक  के प्यार में
मैं क्या जानूं क्या होता है किसी एक के प्यार में
Manoj Mahato
दिल के किसी कोने में
दिल के किसी कोने में
Chitra Bisht
4171.💐 *पूर्णिका* 💐
4171.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
जज्बात लिख रहा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
जिसके लिए कसीदे गढ़ें
जिसके लिए कसीदे गढ़ें
DrLakshman Jha Parimal
- ଓଟେରି ସେଲଭା କୁମାର
- ଓଟେରି ସେଲଭା କୁମାର
Otteri Selvakumar
कौवों को भी वही खिला सकते हैं जिन्होंने जीवित माता-पिता की स
कौवों को भी वही खिला सकते हैं जिन्होंने जीवित माता-पिता की स
गुमनाम 'बाबा'
*लक्ष्मी प्रसाद जैन 'शाद' एडवोकेट और उनकी सेवाऍं*
*लक्ष्मी प्रसाद जैन 'शाद' एडवोकेट और उनकी सेवाऍं*
Ravi Prakash
आओ जमीन की बातें कर लें।
आओ जमीन की बातें कर लें।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सच्चे हमराह और हमसफ़र दोनों मिलकर ही ज़िंदगी के पहियों को सह
सच्चे हमराह और हमसफ़र दोनों मिलकर ही ज़िंदगी के पहियों को सह
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
एक संदेश युवाओं के लिए
एक संदेश युवाओं के लिए
Sunil Maheshwari
Loading...