विकट जंग के मुहाने पर आज बैठी है ये दुनिया
विकट जंग के मुहाने पर आज बैठी है ये दुनिया
वर्चस्व की लड़ाई में आज अटकी है ये दुनिया
प्रेम की भाषा जैसे कहीं विलुप्त हो गई है संजय
अस्तित्व मिटाने स्वयं का आज उलझी है ये दुनिया
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश