वाह नेता जी!
चाटत चाटत घिस गया, नेता जी का जूत।
नेता बिन पनही हुए, हम हो गए कपूत।।
नेता जी का न बचा, पिछला कोई सबूत।
हम भी घर बाहर हुए, पापा हुए निपूत।।
हम दोनों ने करलिया, गठन एक परिवार।
संगठन में शक्ति है, घर घर किया प्रचार।।
धीरे धीरे चल पड़ा, हम सबका कारो बार।
अब पार्टी परिवार है, हम उसके लंबरदार।।
सारा जग अपना हुआ, हम काहू के नाहि।
जैसे जब मन फेंकते, केहू कछु बोलत नाहि।।
जहर जोश सबमें भरा, यह कर दी यलगार।
“संजय” नारा दे दिया, अबकी चारसौ पार।।
जय हिंद