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17 Mar 2019 · 1 min read

वादों का घोड़ा

लो जी सरपट लगा दौड़ने,
फिर वादों का घोड़ा।

कोठी हो या झोंपड़पट्टी,
सबको शीष नवाता।
पीठ चढ़ाकर बड़े प्रेम से,
स्वप्नलोक पहुँचाता।
कुर्सी पर जमने को आतुर,
सुबहो-शाम निगोड़ा।
लो जी सरपट लगा दौड़ने,
फिर वादों का घोड़ा।

मत पूछो इसने किस किसको,
कितना दूर भगाया।
किस से कितना कहाँ-कहाँ पर,
‘चारा’ लेकर खाया।
पाँच वर्ष में आया वापस,
फैल गया है ‘थोड़ा’।

लो जी सरपट लगा दौड़ने,
फिर वादों का घोड़ा।
****
©®
????
– राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 506 Views
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