वादा
मकान के चारों तरफ नारियल के पेड़ हैं। मकान कोई आलीशान बंगला तो नहीं, लेकिन किसी बंगले से कम भी नहीं है। उसके चारों तरफ पक्की बाउंड्री है, उसी में एक बड़ा लोहे का दरवाजा है। सुबह सुबह एक बूढ़ा आदमी दरवाजे के पास खड़े होकर ‘कोई है..?’ की हांक लगाता है। आवाज सुनकर एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ दरवाजे तक आता है।
“क्या है..?”
“तुम्हारी दादी हैं?”
“हाँ..!”
“तो, जाके उनसे बोलो बिहार से महेंद्र आये हैं।”
लड़का वापस जाता है। और करीब पंद्रह मिनट बाद लौटकर आता है। बूढ़ा आदमी लड़के के साथ मकान के अंदर जाता है।
सामने एक बुढ़िया है जिसकी उम्र बूढ़े से तकरीबन 10 साल कम है। दोनों के चेहरे पर एक अजीब सी चमक उभरती है। दोनों देर तक बातें करते हुए अपने अतीत में चले जाते हैं।
बूढ़ा आदमी अपने झोले से एक तस्वीर निकालते हुए बोलता है- “मैंने वादा किया था न… कि मरने से पहले एक बार जरूर मिलूंगा, इसलिए चला आया… तीस साल पहले मैंने जो जो तुम्हारी फोटो मोबाइल में खींची थी अब तक उन्हीं की पेंटिंग बनाता रहा। यह उनमें से ही है… तुम्हारी यह तस्वीर मुझे उस समय भी अच्छी लगती थी।”
पेंटिंग की हुई लेते हुए बुढ़िया की आंखें नम हैं, उसके रूखे होठों से एक फुसफुसाहट निकलती है- ‘लब यू कमीना’।
“अच्छा तो मैं चलता हूँ फ्लाइट आज रात में ही है”- बूढ़ा अपना झोला लेकर बाउंड्री के दरवाजे की तरफ बढ़ता है।
बुढ़िया छोटे बच्चे के साथ उसे छोड़ने दरवाजे तक आती है- “तुम कुछ भूल रहे हो”
“नहीं, मैं इस झोले के अलावा कुछ नहीं लाया था”
“कुछ तो भूल रहे हो”
“क्या.! अब तो पहेलियां मत बुझाओ… बताओ, क्या भूल रहा हूँ।”
“कमीना इंसान”- कहते हुए बुढ़िया बूढ़े के होठों को चूम लेती है- “इसका भी वादा था कमीने केवल मिलने का नहीं।”
छोटा लड़का यह सब देखकर दोनों हाथों से अपनी आंखें ढक लेता है और जोर से चिल्लाता है- “अइयो~~~~!!”
अचानक महेंद्र की आँख खुल जाती है और वह अपने आप से बड़बड़ाता है- “धत्त तेरी की… क्या क्या सपने आते हैं यार…. स्ला पूरा फ्यूचरे दिखा दिया !”