#वादा
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★ यादों के पिटारे से ★
● यह गीतिका १९७३ में लिखी गई थी ●
◆दिल को छुए तो दिल से शाबाशी दीजिए◆
★ #वादा ★
मायूस दिल है नम हैं पलकें
सांसों से उठता धुआँ
जो खेल खेला है हमसे तूने
किसको था इसका गुमाँ
हैरत से मैं तक रहा हूं दीवाना
बहारों को जाते हुए
तुम्हीं कह दो लोग क्या कह रहे हैं
मुझको समझाते हुए
यह किसने कहा है कि मुझको है तुमसे
शिकवा या कोई गिला
न याद जाए मेरी तेरे दिल से
इतनी सी है बस दुआ
इक खिलौना ही जाना मेरा प्यार तूने
ओ संगदिल ख़ूबरू
ख़्यालों में रह के भी तुमने मेरे
ग़ैरों की की जुस्तजू
लेकिन जो हमने तुझे कह दिया है
इक बार अपना सनम
तू तोड़ दे तोड़ दे चाहे रिश्ते
निभाते ही जाएंगे हम . . .!
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२