“वादा” ग़ज़ल
स्याह बादल हूँ इक, छेड़ा, तो बरस जाऊँगा,
किसी का अश्क़ हूँ, पल भर मेँ, ढुलक जाऊँगा।
देखना मुझको, नज़ाक़त से, ज़माने वालों,
ख़्वाब, नाज़ुक सा हूँ, आहट से, बिखर जाऊँगा।
यूँ , पशेमाँ है, समन्दर भी, प्यास से मेरी,
नज़र से पी के पर, इक पल मेँ, बहक जाऊँगा।
रेज़ा-रेज़ा, वजूद, हो गया, मिरा क्यूँ कर,
ज़ुल्फ़ सँवरी जो, सँग उसी के, सिमट जाऊँगा।
न ग़म ख़िज़ाँ का, बहारों का ना ही ज़ोम मुझे,
याद कर उसको, मैं तो, यूँ ही, महक जाऊँगा।
ना दबाओ, मिरी आवाज़, यूँ, अमावस मेँ,
गीत हूँ चाँद का, मैं, फिर से, चहक जाऊँगा।
धूप, बारिश मेँ भी, हूँ घूमता, बरहना सर,
उसकी पलकों की छाँव हो, तो, दुबक जाऊँगा।
कह दो सूरज से, कि गर्मी, न दिखाए इतनी,
इक सितारा हूँ, अँधेरे मेँ, चमक जाऊँगा।
एक मुद्दत से, है चाहा, जो उसी को “आशा”,
कोई , मौसम नहीं, हूँ मैं, जो बदल जाऊँगा..!
ज़ोम # ग़रूर, pride
बरहना # नग्न, naked