Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Dec 2023 · 2 min read

वाणी व्यक्तित्व की पहचान

वाणी को हमारे व्यक्तित्व की पहचान कहना पूर्ण सत्य नहीं कहा जा सकता, सिर्फ एक अंग भर कहा जा सकता है। क्योंकि व्यक्तित्व की पहचान के लिए बहुत सी खूबियों का योगदान होता है, जो समाज द्वारा स्वीकृत व समाज में प्रचलित होती हैं। सिर्फ वाणी को ही प्रधान कारक माना लेना पूर्णतया अनुचित है। संत कबीर ने कहा है-

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे,आपहुँ शीतल होय।।

कबीर दास के इस कथन को गहराई से देखा जाए तो कबीरदास जी का कथन सिर्फ वाणी के प्रेषण के परिप्रेक्ष्य है,न कि व्यक्तिव के पहचान के बारे में।
यह सर्वथा सत्य है कि मीठी, मधुर, शहद भरी वाणी हमारे कानों मे रस घोलती है, हमारे दिल को छूती है, हमें कर्णप्रिय लगती है, जिसे हम बार बार सुनना भी पसंद करते होंगे। लेकिन सिर्फ वाणी को किसी व्यक्तित्व की पहचान का माध्यम नहीं मान सकते।
इसमें कोई संदेह कतई नहीं है कि हमें सदा मीठी वाणी में बोलना चाहिए, लेकिन साथ ही अपने स्वभाव, व्यक्तित्व, व्यवहार, स्पष्टवादिता, आचरण के साथ जीवन में प्राप्त अनुभवों और अनुभवों से सृजित कृतित्व को भी प्रभावी बनाकर ही हम अपने व्यक्तित्व की पहचान को विस्तार दे सकते हैं। इसमें से किसी भी एक के साथ या बिना किसी के संपूर्ण व्यक्तित्व की वास्तविक पहचान हो सके यह असंभव है। क्योंकि ऐसे में व्यक्तित्व की संपूर्ण पहचान मिलने में संदेह है।यह ठीक है कि एक ,दो की कारकों की कमी/ अपूर्णता काफी हद तक आपकी पहचान को भले ही प्रभावित न करे, लेकिन करेगी ही नहीं, यह मान लेना खुद पर घमंड करने से कम नहीं है।
उदाहरणार्थ एक पौधे के विकास के लिए केवल जल जमीन से काम नहीं चलेगा, उसके संपूर्ण विकास के लिए सूर्य का प्रकाश, सुरक्षित वातावरण और खाद के साथ देखरेख की भी जरूरत होती है, अब यह भी तर्क दिया जा सकता है कि जंगलों, पहाड़ों में स्वयं उग आए पौधों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं तो ध्यान दीजिए कि वहां का वातावरण और उसकी जरूरत की ऊर्जा,जल और पृष्ठभूमि वैसी होती है,जो उसकी जरूरतें पूरी करता है। वहां भी अलग अलग स्थान पर विभिन्न प्रकार के पौधों का विकास अलग अलग होता है। हर जगह हर पौधा पूर्ण विकसित नहीं होता। मैदानी क्षेत्रों में सेब की उपज नहीं होती। धान गेहूं की अच्छी उपज देने वाली जगहों पर बहुत सी फसलें पूर्ण विकसित नहीं होती, या पर्याप्त उपज नहीं मिलता। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि व्यक्तिव की पहचान सिर्फ वाणी से हो सकती है। सपाट शब्दों में कहें तो यह असंभव है, बिना अन्य कारकों के संयोजन से।
इसीलिए यह कहना पूर्णतया सही नहीं है कि वाणी व्यक्तित्व की पहचान है।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
203 Views

You may also like these posts

भारतीय आहारऔर जंक फूड
भारतीय आहारऔर जंक फूड
लक्ष्मी सिंह
उसकी मर्ज़ी पे सर झुका लेना ,
उसकी मर्ज़ी पे सर झुका लेना ,
Dr fauzia Naseem shad
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी,
Rituraj shivem verma
भोर
भोर
Kanchan Khanna
कुछ पल अपने नाम कर
कुछ पल अपने नाम कर
Sonam Puneet Dubey
- खामोश मोहब्बत -
- खामोश मोहब्बत -
bharat gehlot
ऐसे कैसे हिन्दू हैं
ऐसे कैसे हिन्दू हैं
ललकार भारद्वाज
मेरे कुछ मुक्तक
मेरे कुछ मुक्तक
Sushila joshi
होली के रंग
होली के रंग
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
चांद बिना
चांद बिना
Surinder blackpen
ज्योत्सना
ज्योत्सना
Kavita Chouhan
प्रकाश
प्रकाश
Swami Ganganiya
■ शुभ महानवमी।।
■ शुभ महानवमी।।
*प्रणय*
मां की ममता जब रोती है
मां की ममता जब रोती है
Harminder Kaur
खुद की कविता बन जाऊं
खुद की कविता बन जाऊं
Anant Yadav
वफा
वफा
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
sushil sarna
तुम्हारी याद..!
तुम्हारी याद..!
Priya Maithil
आओ आओ सखी
आओ आओ सखी
इंजी. संजय श्रीवास्तव
देर
देर
P S Dhami
कुछ  गीत  लिखें  कविताई  करें।
कुछ गीत लिखें कविताई करें।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
"विदूषक"
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shweta Soni
यमराज की नसीहत
यमराज की नसीहत
Sudhir srivastava
जब ‘नानक’ काबा की तरफ पैर करके सोये
जब ‘नानक’ काबा की तरफ पैर करके सोये
कवि रमेशराज
दुर्गावती घर की
दुर्गावती घर की
पं अंजू पांडेय अश्रु
"हमें इश्क़ ना मिला"
राकेश चौरसिया
आत्मविश्वास जैसा
आत्मविश्वास जैसा
पूर्वार्थ
एक तरफ धन की बर्बादी ,
एक तरफ धन की बर्बादी ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
मकसद ......!
मकसद ......!
Sangeeta Beniwal
Loading...