वागंगोदक- दंडक छंद
🙏
!! श्रीं !!
सुप्रभात !
जय श्री राधेकृष्ण !
शुभ हो आज का दिन !
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वागंगोदक– (मापनीयुक्त मात्रिक सम दंडक छंद)
(8 रगण)
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चार दिन की खिली चाँदनी में मगन, मन अरे! भूल तू क्यों गया काल को ?
रेत सा हाथ से रिस रहा है समय, भूल क्यों तू गया वक्त की चाल को ?
मूँछ पर ताव दे भूल सब कुछ गया, ठोकता काल के सामने ताल को ।
तू सँभल जा अरे ! छोड़ दे मूढ़ता, अन्यथा हाथ सहलायगा गाल को ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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