वह
बहुत कुछ बदल चुका है
पर क्यों लगता है कि तुम हो यही कहीं
कुछ सालों पहले सब ठीक ही तो था फिर क्या बदल गया?
क्या हो गया था ऐसा कि तुम, तुम ना रही।
आखिरी मुलाकात में कहा था तुमने की जब भी जरूरत हो बुला लेना फिर क्यों नहीं बुलाया?
शराब नही उतरी कल की,दोस्त ने चिल्लाते हुए कहा,
लेकिन तब तक आधा शरीर गीला हो चुका था।
ऑफिस की तैयारी के बीच ऋतिक के सवाल बस चलते रहे लेकिन upsc वाले दोस्त का सिवाए hmmm के कोई उत्तर नहीं।
रास्ते में,
जाते हुए अचानक एक आवाज जानी पहचानी सुनाई दी और मोटरसाइकिल रूक गई।
ऋतिक,निहारिका को देखते रहा बस। फिर अचानक से बोल पड़ा।
निहारिका इतनी जोर से क्यो आवाज दी!
क्योंकि तुम रुक जाओ और ऑफिस तक ले चलो।
मोटरसाइकिल चल दी और ऑफिस पहुंच के काम मे लग गए।
रात के समय ऋतिक का संवाद कुछ हद तक जैसे खुद से ही संवाद करने में व्यस्त दिखाई दे रहा था।
क्यू रोक लेती हो निहारिका मुझे , काफ़ी जगह रहती है मोटरसाइकिल मे हम दोनों के बीच लेकिन तुम ,तुम उस जगह को खाली नहीं रहने देती, सब कुछ जानते हुए भी,मत आया करो इतने पास,स्पर्श तुम्हारा मुझे उसकी याद दिलाता है, लेकिन तुम नही समझती हो ,डर लगता है मुझे , अगर उसने कभी हम दोनो को ऐसे देख लिया तो क्या सोचेगी वो,
फिर अचानक से आवाज
क्या उसने देख लिया है? नहीं नहीं नहीं
छोड़ो मुझे,छोड़ो,जाने दो मुझे उसके पास,
ये सुनामी कैसे आ गई!!
जब तक ऋतिक कुछ समझ पाता तब तक आधा शरीर पानी से गीला हो चुका था और ऋतिक का दोस्त उसको चिल्लाता हुआ, साले कब ठीक होगा तू, कितनी बार समझा चुका हूं मेरी नींद क्यों खराब करता है!
चल अब उठ और सोने दे मुझे।
फिर वही मशीनी तैयारी के साथ ऋतिक ऑफिस को जाने वाला होता ही है कि……
ऋतिक ने upsc की तैयारी करने वाले दोस्त से पूछा, क्या सुबह के सपने सच होते है?
दोस्त जानता था कि ऐसे सवाल क्यों पूछे जा रहे है,
पता नहीं अगर होते भी हैं तो तुम अच्छा सपना देखा करो।
मगर अच्छे सपने आते कैसे है?
यह तो नहीं पता ऋतिक लेकिन अच्छा देखने से अच्छे सपने आ सकते है शायद।
तो अच्छा देखना क्या होता हैं?
भाई मेरे, तुम्हे ऑफिस को देरी हो रही है,जाओ जल्दी निहारिका इंतजार कर रही होगी,जल्दी जाओ।
भागता हुआ ऋतिक ऑफिस के लिए निकल पड़ता हैं।
रास्ते मे आज,ना निहारिका थी ना ही वह आवाज जो बीच रास्ते में ऋतिक को रोक लेती थी, ऋतिक ऑफिस मे निहारिका को यहां से वहां ढूंढता रहता है लेकिन कहीं भी निहारिका नहीं मिलती है और फिर निहारिका को कॉल
करने पर भी उत्तर नहीं मिलता हैं,
उदास मन से लेकिन वापिस रास्ते में एक चाह से बस निहारिका के बारे में सोचता ही कि अचानक निहारिका उसी जगह खड़ी मिलती है हर रोज की तरह
लेकिन इस बार पूरे अलग लिबास मे,
मोटरसाइकिल किनारे लगा कर,
बहुत होटों को काबू किए लेकिन फिर बोल ही पड़ता है,
तुम क्यों नही आई आज ऑफिस।कितना परेशान हुआ आज। तुम्हें सोचना चाहिए था लेकिन तुम भी ऐसा करोगी तो मैं कैसे जा पाऊंगा हर रोज ऑफिस! निहारिका कुछ बोलो तो सही,यही वो जगह है जहां हर रोज तुम मिलती हो, हर रोज आवाज़ देकर रोक लेती हो मुझे लेकिन आज क्यों नहीं आई तुम,क्या मैं रुकता नहीं तुम्हारे लिए,हर रोज ले जाता हूं ऑफिस,कितनी बार लेट हुआ हूं तुम्हारे कारण लेकिन कभी भी कुछ कहा हो तुम्हें!
एक आवाज़ अचानक से,
भाई मोटरसाइकिल को आगे बढ़ाओ, दिखता नहीं तुम्हें कितना ट्रैफिक हो चुका है तुम्हारे कारण!
हां तो ,
तुम्हें नहीं दिखता कितनी ज़रूरी बात कर रहा हूं।
तो बात किससे कर रहे हो वो भी तो दिखे
आंखों को सही करो अपनी,ऋतिक जोर से बोलता है,दिखाई नहीं देता क्या तुमको? इतनी सुंदर,सुशील लड़की मेरे सामने खड़ी है,आंखे हैं या बटन!!
तुम्हारी आंखे बटन होगी मेरी तो आंखे ही हैं।
तुम क्यों ध्यान दे रही हो उस पर,तुमसे बातें कर रहा हूं,बताओ भी अब क्यों नहीं आई आज,क्यों!!
ये बटन पर पानी कैसा आ रहा हैं,लगता है फिर से सुनामी आ गई।
ऋतिक जब तक कुछ समझ पाता तब तक आधा शरीर गीला हो चुका था, दोस्त चिल्लाता हुआ साले कब ठीक होगा तू , कितनी बार समझा चुका हूं,मेरी नींद क्यों खराब करता है!
चल अब उठ और सोने दे मुझे।