वह और तुम
वह जगत भाग्य निर्माता
परन्तु
कितना निष्ठुर है
उसका भाग्य विधाता
वह…….वह है………
जिसकी सारा जीवन
यूँ ही व्यतीत हो जाता है
कभी इस प्रयत्न में
कि
किसी तरह
उसका
तन ढ़का रहे
तो कभी इस प्रयत्न में
कि स्वयं को चाहे न मिले
परन्तु परिवार भूखा न रहे
इसे चाहे
तुम
भाग्य की विडम्बना कहो
या उसकी नियति
परन्तु !
उसका भाग्य
ऐसा था नहीं
बनाया गया है- हाँ बनाया गया है
और इस तुमने बनाया है
उसके त्रस्त ध्वस्त
जीवन का कारण
तुम्हीं हो
तुम्हीं ने उस की दृष्टि ऐसी बना दी है-
कि अब वह तुम्हारे
छल प्रपंच के बारीक जाल को
नहीं देख सकता
और तुम्हें जीवन दाता समझ
तुम्हारी पूजा करता है
और फिर – तुम
उसके भाग्य का निर्माण करते हो –
मुश्किल से एक वक्त की रोटी
और कुछ सपने देकर
और वह जीता रहता है उन्हें
साकार होने की आशा लेकर
जीवन के अन्तिम पल तक
परन्तु ऐ ! भाग्य
कुटिल नीति निर्माता !!
यदि तू सचमुच कुछ देना चाहता है
तो भर पेट भोजन तो दे
परन्तु शायद
तुझे इस बात का डर है-
कि यदि तूने उसे भर पेट भोजन दिया
तो…..उसकी दृष्टि
स्वस्थ और पैनी हो जाएगी,
और फिर उसे
तेरे प्रपंचों को पहचानने में
कुछ मुश्किल नहीं आएगी ।
परन्तु ऐसा नहीं
कि वह हमेशा
भूखा ही रहेगा,
यदि तू नहीं
तो कोई और उसकी भूख मिटाएगा
और फिर
तुम्हारी यह दोहरी नीति ही नहीं
तुम्हारा आस्तित्व भी मिट जाएगा
अब इसका निर्णय
तुम स्वयं करो
कि तुम्हें सुधारनी हैं अपनी नीतियाँ
या अपना आस्तित्व ही मिटाना है।