वही नूर-ओ-नाज़नीन हो तुम-
मेरे हसीं सपनों के, हमराह हुआ करते हो तुम,
जब भी मूंदता हूँ आंखें, सामने होते हो तुम।
अच्छा है तुम्हारे ख़्वाबों में वक़्त का गुज़रना,
तंग उलझनों के ख़िलाफ़, मेरा सुकून हो तुम।
कौन कहता है, आसां नहीं बदलना तकदीरें,
जब भी मिले हो, मुकद्दर बदल जाते हो तुम।
रुख़सार पे जवां लाली, होंठों पे सुर्ख तबस्सुम,
उम्र के हर दौर में,वही नूर-ओ-नाज़नीन हो तुम।
वाजिब है मेरा, तुमसे फ़ासले बनाकर चलना,
तब भी नशीली थी, आज भी नशीली हो तुम।
-श्रीधर.