*वहीं बूढ़ों के आश्रम हैं (मुक्तक)*
वहीं बूढ़ों के आश्रम हैं (मुक्तक)
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जहाँ पर क्लेश पति-पत्नी के होते रोज हरदम हैं
जहाँ फुर्सत नहीं है स्वार्थ से ,बस अपने ही गम हैं
बिखर जाता है जीवन ,टूटते परिवार हैं जिनके
जहाँ पर घर नहीं बसते ,वहीं बूढ़ों के आश्रम हैं
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रचयिता : रविप्रकाश,बाजार सर्राफा
रामपुर(उ.प्र.) 9997615451