वसुधैव कुटुम्बकम ्
हमारे भारतीय गणतंत्र ,संस्कृति, सभ्यता की मूल आधार है–वसुधैव कुटुम्बकम की भावना।यह संस्कृति सामासिक संस्कृति है जिसमें तेरा-मेरा की भावना नहीं होती।भारतीय संस्कृति की मूल आधार भावना विश्वशांति करने में सहायक हो सकती है।
पारिवारिक मनोवृत्ति ही इस विश्वशांति में सहायक हो सकती है।
परहित सरस धर्म नहीं भाई,परपीड़ा सम नहीं..
दूसरे के प्रति उपकार की भावना करना,उपकार करना,इससे बढ़कर अन्य धर्म नहीं।जो व्यक्ति दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानता है ,उसे दूर करने का प्रयास करता है–वह विश्वमैत्री,विश्वशांति स्थापित करने में मदद कर सकताहै ।वर्तमान समय में यह परोपकार व परपीड़ा की भावना यदि मानव मात्र के हृदय में जगह बना ले तो भारतीय संस्कृति ,सभ्यता सदैव के लिए अक्षुण्ण रह सकती है।
मनोरमा जैन पाखी