वसंत
कूंकती कोयल काली,बैठ आम की डाली,बावली ये मतवाली,करती पुकार है ।
खिले पुष्प डाली-डाली,सींचते जिसको माली,शोभित धरा निराली, बसंत बहार है।
चारों ओर हरियाली, किरणों की उजियाली,मुख पर छाई लाली, खुशियाँ अपार है।
स्वर्ण-सुनहरी बाली,सजा हृदय की थाली,भर दी आँचल खाली, दिव्य उपहार है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली