वसंत को छाने दो
सूने-सूने उद्यानों में
फूलों का मौसम आने दो
ऋतु वसंत को छाने दो।
सूखी कलियाँ मनुहार करें
कब सज-धजकर शृंगार करें
डाली से मत तोड़ो उनको
कुछ पल तो मुस्काने दो।
जिंदा रहने दो मानव को
पंछी को,पादप को, सबको
विष मत घोलो बागीचों में
भँवरों को मँडराने दो।
जीवन में हो बदलाव बड़ा
छोड़ो हिंसा का चाव बड़ा
मत उलझो आपस में भीषण
आँधी को रुक जाने दो।
लहराती गेहूँ की बाली
महकाती भोजन की थाली
श्रमनिष्ठ बनो, निर्माण करो
मूर्खों को गुर्राने दो ।
रथ लेकर आए हैं दिनकर
प्रातः की धूप खिली भू पर
खेतों की सौंधी खुश्बू को
तनमन में मदमाने दो।
-जगदीश शर्मा सहज
अशोक नगर
/माघ शु.११/वि.सं.२०७८