वसंतोत्सव
वसंतोत्सव
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं-
मासानां मार्गशीर्षोहं,ऋतुनां कुसुमाकर:।
अर्थात मैं महीनों में अगहन। ऋतुओं में वसंत हूं।
वसंत ऋतु में ठूंठ में भी प्राण आ जाते हैं। मानव जीवन के उम्र भी वसंत पर गिने जाते हैं।यथा- मैंने जीवन के पचास वसंत पार कर लिए।
गोयनका कालेज , सीतामढ़ी के साहित्य परिषद ने वसंतोत्सव पर निबंध लेखन प्रतियोगिता आयोजित किया था। कालेज के पांच छात्र वसंतोत्सव के वारे में जानने के लिए शहर के प्रसिद्ध साहित्यकारआचार्य श्यामानंद जी से मिलने उनके आवास श्यामा निवास पहुंचे।
आचार्य श्यामानंद जी ने छात्रों को स्वागत करते हुए आने के कारण पूछा। एक छात्र विजय ने कहा-हमलोग आपसे वसंतोत्सव के बारे में जानना चाहते हैं।
आचार्य श्यामानंद जी-वसंतोत्सव। वसंत और उत्सव। उत्साह और उमंग का पर्व है वसंतोत्सव। जीवन में निराशा से मुक्त होने का पर्व है वसंतोत्सव।
वसंत छह ऋतुओं में एक प्रमुख ऋतु हैं।इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। अर्थात ऋतुराज। रामचरित मानस में भी वसंत की चर्चा है।
दूसरे छात्र रोहित ने कहा-आचार्य जी। रामचरित मानस में भी वसंत की चर्चा है।
आचार्य श्यामानंद जी ने कहा-हां। पार्वती जी, भगवान शिव से शादी के लिए घोर तपस्या की। लेकिन भगवान शिव ध्यानास्थ थे। पार्वती के शादी के लिए उनका ध्यान तोड़ना आवश्यक हो गया। देवताओं ने कामदेव को भेजा। भगवान शिव में काम भावना जगाने के लिए वसंत ऋतु प्रकट किया। सभी पेड़ पौधे हरे भरे हो गये। फूलों की डालियां फूलों से लद गए।मंद मंद हवायें बहने लगी।नदी और तालाब पानी से भर गये। पक्षी कलरव करने लगे। जलचर, थलचर और नभचर प्राणी कामातुर हो गये।
तीसरे छात्र अजय आश्चर्यचकित होते हुए कहा-कामातुर!
आचार्य श्यामानंद जी-हां। कामातुर बने बिना भगवान् शिव का ध्यान भंग नहीं हो सकता था।तो फिर पार्वती की शादी भगवान शिव से कैसे होती ?
अंत में कामदेव ने कामवाण चला दिया। भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया। लेकिन भगवान शिव के तिसरे नेत्र से देखने के कारण कामदेव जल कर भस्म हो गया। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना किया कि जब काम ही नहीं रहेगा तो श्रृष्टि कैसे होगी।
भगवान शिव ने कहा-अब से कामदेव अनंग रूप में रहेंगे। और सभी प्राणियों में व्याप्त रहेंगे। कामदेव का एक नाम मदन भी है।यानी वसंतोत्सव को मदनोत्सव भी कहा जाता है। कहीं कहीं कामदेव की पूजा मदनोत्सव या वसंतोत्सव के रूप में मनाते है।
छात्र सोहन ने कहा-आचार्य जी। अपने यहां तो वसंतोत्सव नहीं मनाते है। कामदेव की पूजा नहीं होती है।
आचार्य श्यामानंद जी ने कहा-हां। यहां वसंतोत्सव दूसरे रूप में मनाया जाता है।वह है-होली।
सभी छात्र समवेत स्वर में बोला-होली!
आचार्य श्यामानंद जी ने कहा-जब विष्णु भक्त प्रहलाद को मारने के लिए हिरण्यकशिपु अपनी बहन होलिका को अग्नि में प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाने को कहा। होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान था। लेकिन प्रभु की कृपा से होलिका जल गई और प्रभु भक्त प्रहलाद बच गया।उस खुशी में लोग होली मनाते हैं। लोग रंगों की होली खेलते हैं।सारे बैर भाव भूलकर एक दूसरे पर रंग डालते हैं और अबीर लगाते है।
छात्र विकास ने कहा-होली में लोग डंफ ,मंजीर,झाल, करताल बजाते हुए फगुआ गीत गाते हैं।
आचार्य श्यामानंद जी ने कहा-फगुआ गीत ही तो होली को वसंतोत्सव का भान कराता है। यथा -भर फगुआ बुढ़वा देवर लागे।
फगुआ वसंत का द्योतक है। फगुआ वसंत ऋतु में ही होता है।जब तिसी में फूल आने लगते हैं।बुढा में भी जवानी के रंग दिखने लगती है। तभी तो कोई छविली नारी कहती है-भर फगुआ बुढ़वा देवर लागे।
सभी छात्र आनंदित दिखाई पड़ते हैं।
आगे आचार्य श्यामानंद जी कहते हैं-इतना ही नहीं। एक बुढा आदमी डंफ पीटते गाता है–
नकबेसर कागा,ले भागा। सैंया अभागा न जाना।।
वह बुढा भूल जाता है कि नकबेसर उसके पोती के नाक में है।
यह वसंत के प्रभाव में भूल जाता है।वसंत की मस्ती जो है।
रिश्ते में छोटे, रिश्ते में बड़े को पैर पर गुलाल रखते हैं और बड़े छोटे को ललाट पर गुलाल का टीका लगा कर आशीर्वाद देते हैं। लगता है होली देवर भाभी के प्रेम का विशेष पर्व है ।
छात्र विजय ने कहा-होली के पवित्र दिन को भी कुछ लोग बदनाम करने में लगे हैं।अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिए इसी दिन को चूनते है।जो ऐसा नही होना चाहिए।
आचार्य श्यामानंद जी ने कहा–असमाजिक तत्त्व ऐसा करते हैं चाहे वह दूर्गा पूजनोत्सव हो या वसंतोत्सव ।
लेकिन अब प्रशासन और लोग सजग है।हर हाल में हम वसंतोत्सव मनायेंगे ।
सभी छात्रों ने समवेत स्वर में कहा आपने विस्तार से वसंतोत्सव पर जानकारी दी। अब हमलोग वसंतोत्सव पर उत्कृष्ठ निबंध लिखेंगे।आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
सभी छात्रों ने निबंध लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। परिणाम छात्रों के हक में रहा। सभी छात्रों ने वसंतोत्सव में भी भाग लिया।
स्वरचित-
रामानंद मंडल, सीतामढ़ी।
मो-9973641075
कहानी प्रतियोगिता हेतु।