वर्षा
मित्रो नमस्कार…..
बहुत समय से तच रही वसुधा पर इन्द्र मेहरबान हुए हैं ..
वर्षा किस तरह से रूपक प्रस्तुत कर रही है …
आयें पड़े …..
इठलाते ,बल खाते ,गोरी के आंचल से ,,..
उड़ उड़ कर घुमड़कर मेघ जल बरसाते …
मन हरसाते तन सरसाते
उमड़ घुमड़ कर हरदम प्रिय की यद् दिलाते ..
छा जाता सजनी का मुखड़ा ,,दूर खड़ा रहता सब दुखड़ा ..
मोती की झालर से गिरते मेघ निहारूं
सपनो में प्रिय के केशों का खुलना हिलना उड़ना आज संवारू
ऐसे ही बरसो मन में तन में सिहरन बनी रहेगी रजनी के आते
सजनी की स्मर्ति छपी रहेगी ,,,,