वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु
रिमझिम वर्षा हो रही ,नूतन किसलय चूम।
हरित तृणों की नोक पर ,बारिश बूंदे झूम।
बारिश बूंदे झूम, मेघ गरजे घनघोरा।
नर्तन करें मयूर,मोरनी का चितचोरा।
कहें प्रेम कविराय,रहे पावस ऋतु धिमधिम।
हरषे खेत किसान, गगन घन बरसे रिमझिम।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम