वर्तमान
जिंदगी का आलम वही है बस हूर बदल गए है
पेड़ो की डलिया वही है खजूर बदल गए है
कौन सुनता है कम्बख्त बेज़ुबाँ की
राजनीत वही है बस हुज़ूर बदल गए है
सुना है लोग छूते थे पैर कभी जिसके
आज उनके मगरूर बदल गए है
इंसा सभी वही है इस जहाँ मे
बस अपने अपने सुरूर बदल गए है
सोचता हू कभी अकेला तन्हा होकर
जिया हू जिसके लिए रातें काटकर
ना जाने क्या दिन आ गए है आज
हम वही है लेकिन उनके नूर बदल गए है
कहना कुछ नहीं है जहाँ मे अब तो
देखता हू जिंदगी का आयाम क्या होता है
अब थोड़ा ज़ब हम बदलने क्या लगे
वह बोले लगता है भाई आप के गुरुर बदलने लगे है