वर्तमान
राजी बिलकुल हैं नहीं , करने कोई सुधार ।
मरते हैं मरते रहें , कृषक दीन लाचार ।।
कृषक दीन लाचार , हाय कैसी है किस्मत ।
कभी प्रकृति की मार , कभी कुर्सी की रहमत।।
इतना ज्यादा दम्भ , हाय कैसा है काजी ।
करने कोई सुधार , नहीं है बिल्कुल राजी ।।
सतीश पाण्डेय