वर्तमान सामाजिक समस्या
आज हमारा समाज अनेक पर्यावरणीय समस्याओं, कुप्रथाओं,मतभिन्नता व सामाजिक विकृतियों से घिरा हुआ है। व्यक्ति वैज्ञानिकता के परिणामस्वरूप भौतिक सुख सुविधाओं से लिप्त होता जा रहा है ।लेकिन इन सुख सुविधाओं का आनंद लेने में हम तब सफल होंगे जब हमारा अस्तित्व सुरक्षित रहेगा और आज हमारा अस्तित्व संकट में है। मनुष्य सुखी तब रह सकता है जब उसे पीने के लिए स्वच्छ जल,जीने के लिए स्वच्छ वातावरण व स्वच्छ विचार मिले और आज इन्हीं का अभाव है। मनुजता का पतन हो रहा है। पारिस्थितिक, वैचारिक व सामाजिक प्रदुषण से समाज पतित हो रहा है। मनुष्य अपने कर्तव्यो को भूलकर ऐसे कुकृत्यों को कर रहा है जिसके काल का ग्रास वह स्वयं बन रहा है। व्यक्ति न करने योग्य बातों को करता है,न सोचने योग्य बातों को सोचता है। मनुष्य जीवन में न तो प्रसन्नता है,न तो सुख -शांति।
।।रुचि दूबे।।