वर्तमान समाज में बढ़ती संवेदनहीनता
वर्तमान समाज में बढ़ती संवेदनहीनता
प्रतियोगिता परीक्षा में सफल हो जाने भर को ही सफलता कामयाबी कहने वाला समाज संवेदनहीन होते जा रहा.
समाजिक सरोकारों के प्रति संवेदान, वैचारिक व्यबहारों की जरूरत, लघु उद्यम, मजदूरों ग़रीबों के प्रति मानवीय मूल्य आदी से लोग कोशो दूर होते जा रहें है.
समाजिक अपराध, आत्महत्या, अकेलापन, दौलत की दिवानगी, लूट खसोट दिनानुदिन बढ़ते ही जा रहे हैं.
आखिर क्यूँ?? दोहरी समाजिक मानसिकता.
अगर कोई दूसरा व्यक्ति किसी दूसरे फील्ड में थोड़ा बहुत सफल है भी तो उसे हम सम्मान क्यूँ नहीं देते?? सिर्फ इसलिए की उसके फील्ड में पैसों की आमदनी उतनी नहीं है??
प्रतियोगिता परीक्षा में कई बार कई बहुत अच्छे छात्र कई कारणों से अंतिम रूप से सफल नहीं हो पाते हैं जैसे रिजल्ट में धांधली, परीक्षा साक्षात्कार में पूर्व नियोजित सेटिंग गेंटिंग, असमय आयोजन प्रणाली इत्यादी.
जो बच्चे सफल हुए उसे लोग बधाइयों से सरताज बना देते लेकिन असफल बच्चों को ताने बाने देकर जीना दुश्वार कर देती है आखिर क्यूँ??
एक डाॅ. इंजीनियर आइएएस नेता बड़े व्यापारी को उपरी आमदनी बेइमानी शैतानी का भरपूर मौका रहता है. उसकी जिंदगी में खूब पैसे होते हैं.
लेकिन वहीं पर सामान्य कामगार, प्राइवेट नौकरी वाले को मेहनताना भी बड़ी मुश्किल से मिल पाता है. माना की वह कम पैसे कमा पाएगा तो क्या उसे जीवन जीने का हक़ नहीं?? समाज इतना संवेदनहीन होते जा रहा है की ज्यादा पैसों के लालच में समाजिक अपराध बढ़ते जा रहे हैं.
स्टेटस का वेबज़ह तनाव आखिर ये समाज लोगों को क्यों परोसने में लगा हुआ है. मेहनतकशी, लघु उद्यम, कृषि, रोजगारपरक शिक्षा, स्वरोजगार की शिक्षा के द्वारा भी सामान्य जीवन खुशाहालपूर्वक जिया जा सकता है.
लेकिन लोग इन सबके प्रति संवेदनहीन ना बनें.
आलेख- डाॅ. किशन कारीगर
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