*वफ़ा मिलती नहीं जग में भलाई की*
वफ़ा मिलती नहीं जग में भलाई की
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वफ़ा मिलती नहीं जग में भलाई की,
सजा मुश्किल सदा मिलती जुदाई की।
सहे जाए न वो लम्हें , जुदा कर दे,
घड़ी आई यहाँ फिर से विदाई की।
यकी कर लो जरा हम पे कहें दिल से,
कसम खाई हुई हमने खुदाई की।
नहीं सुनता कहीं कोई सदाएँ भी,
नहीं मिलती सदा कीमत मिलाई की।
अकेला देख मनसीरत चला आये,
जरूरत तब नहीं बिल्कुल दवाई की।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)