वतन
‘तेरी मिट्टी में मिल जावा’ की तर्ज पर गुनगुना कर देंखें,,,,,,,,
तेरी है ज़मीं मेरी है ज़मीं,
इंकार कहाँ कोई करता है,
बलिदान वतन पे सबका है,
जब वार कोई भी करता है,
गांधी नेहरू की जमीं यही,
आज़ाद भगत से सनी हुयी,
कुर्बान हुये अनजान बहुत,
पत्थर पर लकीरें बनी हुयी,
जब बात वतन की आती है,
सब दर्द ख़तम हो जाती है,
बहता जो लहूँ हममें तुममें,
फिर गिरे नहीं गुस्ताख़ी है,
ये कौम जहां तूँ आबाद रहे,
सर पर न कोई इल्जाम रहे,
हर भारतवासी मिले खड़ा,
जब संकट कोई आन पड़े,
इतना सभी को ख़्याल रहे,
कुर्बानी मुकम्मल याद रहे,
जो हैं मतभेद भुलाते सभी,
हर कोई यहां पे आबाद रहे,
ये मेरी ज़मीं बस मेरे लिए,
मेरे हक़ में यही अदा करना,
मेरी सांसें सदा कलम पे रहे,
औ जां वतन पे फ़िदा करना,