वतन
दोहे
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जान लुटाते वतन पर,धन्य धन्य वे वीर।
बुरी नजर कोई पड़े,देते सीना चीर।।
रक्षा हित निज वतन की,प्राण करें कुर्बान।
सदा मनुज वह देश में,पाता है सम्मान।।
सरहद रक्षा नित करें, सदा त्याग आलस्य।
प्राण त्याग करते समय,रखते मुख पर हास्य।।
तन मन धन सब वतन पर,तजकर उर हर्षाय।
वह नर भारत मातु का, सच्चा सुत कहलाय।।
सेवा हित तत्पर रहे,वही वतन का लाल।
शत्रु सैन्य को दीखता, हरपल जैसे काल।।
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स्वरचित मौलिक-आशुकवि कौशल कुमार पाण्डेय “आस “