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2 Jun 2022 · 1 min read

‘वट वृक्ष’

साक्षात त्रिदेव वट,
सब तरुओं से हट।
अंतर अमिय घट,
गमन परख झट।।

दीर्घजीवी होती जड़,
दूर रहे पतझड़।
गहन भू तक गढ़,
कहाए अक्षय वट।।

हैं ब्रह्मा जड़ भीतर,
तन बीच गिरिधर।
शाख पात हर-हर,
लटकाते जटा लट।।

छाया भी होती सघन,
है योगी योग आसन।
जड़ ,दुग्ध,पात-रस,
व्याधि बहु काटे झट।।

स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी

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