वचन भंग
वचन भंग
लघुकथा
बुढ़ी मां की अनेकों झुर्रियों के बीच धंसी आंखें प्रतिदिन बेटे की राह देखती, इस आशा से कि वह अनेक वर्षों के बाद आज शायद आ जाए , क्यों कि आज उसका जन्मदिन है । मां ने कम्पकपाते हाथों से कुछ पकवान बनाए और विधी माता की पूजा कर कामना की कि मेरे बेटे को वे सारी खुशियां मिले जो वह जीवन में चाहता है। मां बैठे-बैठे उसके बचपन की यादों में खो गई, अकेली बुदबुदाती कह रही है ,अरे! श्याम इतना काम मत करो, थक जाएगा । देखो पढ़ाई पर ध्यान लगाओ , ठीक से पढ़ोगे तो कक्षा में अव्वल आओगे। मेरे राजा बेटे को तो बड़ा अधिकारी बनना है न। फिर मैं आधा जीवन चैन से अपने पोतों के साथ खेल के बिताऊंगी । परन्तु श्याम चुपचाप खेत में अपना काम करता रहा। अचानक एक भारी पत्थर आकर उसके पैर पर गिर गया । श्याम चिल्लाया , मां! ।
अचानक बुढ़िया के मुंह से हृदय चीर आवाज आई , बेटा श्याम ! और उसका ध्यान रूपी सपना टूट गया । बुढ़िया की छोटी-छोटी आंखों में अश्रुओं का झरना बह गया । परन्तु ईश्वर को कुछ और ही स्वीकार था । श्याम को पढ़- लिख कर शहर में नौकरी तो मिली , साथ में सुंदर पढ़ी-लिखी धनी परिवार की लड़की भी मिल गई थी । अब श्याम अपनी दुनिया में इतना व्यस्त था कि वह मां को और मां के पास कहे शब्दों को भूल गया । उसे तो इतना भी याद नहीं कि उसकी मां भी है।परन्तु मां बरसों से उसकी कहीं बातों का अकेली गीत गुनगुनाती है ।
मां मैं जल्दी आऊंगा,
प्यारी सी दुल्हन लाऊंगा
तेरे सारे कष्ट हरकर
तुम्हें आंखों पर बिठाऊंगा ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर ( हि० प्र०)