Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jul 2020 · 3 min read

{{ ◆ वक्त ◆ }}

ये वक्त भी कितना अजीब होता है, कितने ही रंग छुपे होते है एहसास के | ज़िंदगी के सारे पन्नों पर वक्त ही तो अपना अच्छा बुरा रंग छोड़ता है | अच्छा वक्त तितली के पंख की तरह खूबसूरत होता है , जिसे हम छूते है तो उन पखों के सारे खूबसूरत रंग हमारी ज़िंदगी में अब्र की तरह छा जाते है, मगर जब बुरा वक्त आता है तो है तो ऐसा महसूस होता है के मानो वो …….किसी रेंगते हुए कीड़े की तरह धीरे- धीरे चलता है और आपके मस्तिष्क और मन पर पड़ी सुहानी यादों को आहिस्ते – आहिस्ते खाने लगता है | हम उस दौरान कितनी भी कोशिश कर ले , अपना ध्यान दूसरी और ले जाए मगर वो कीड़ा रूपी वक्त हमे अंदर ही अंदर कहा ही जाता है|

कहते है इंसान को वक्त से पहले कुछ नहीं मिलता है, जो वक्त की कद्र….. वक्त भी उसकी कद्र नहीं करता है, बाद में निराश ही हाँथ लगती है | जब वो वक्त निकाल जाता है तो ज़हन में सिर्फ और सिर्फ रह जाता है दुख और पछतावा | वक्त के हाथों शायद कुछ नहीं नमूमकिनात नहीं होता है न इत्तेफाक होता है| हर इंसान ज़िंदगी की जद्दोजहद से कुछ फरिक वक्त ही खोजता है , बाकी सर वक्त तो बस मेहनत , मेहनत और मेहनत |

लेकिन ये भी सोचने वाली बात है क्या वक्त हमे चलती है या हम वक्त को अपने इशारे पे नचाते है | फ़र्क है दोनों बात में……. सच तो ये है के जब सब हमारे मन के अनुसार चल रहा होता है इंसान सोचता है वकअत तो मेरी उगलियों पर नाचता है, जैसे चाहे वैसे इसे मोड सकता हूँ , लेकिन जब बुरे वक्त से गुजरते है तो दोष उसी वक्त को देते है| ये वक्त ही होता है जो कभी खुशियों आडंबर लगा देता है कभी ज़िंदगी से जबरदस्ती सारे सुख छिन लेता है |

इंसान की पहचान भी तो वक्त से ही होती है, जैसे सोने की पहचान आग से होती है| आग की लपटों में ही सोना और चमकता है , वक्त हमारे व्यक्तित्व को कितना निखरता है ये तो कठिनाइयों से , वेदनाओ से, संघर्ष से लड़ के जब हम विजयी होते है तभी मालूम होता है वक्त की अहमियत | इंसान, ज़िंदगी, कायनात सब वक्त के हाथों की कठपुतलिया ही तो है, उसके आगे क्या राजा क्या रंक | वक्त के आगे ज़िंदगी हर जाती है, चेहरे की मुस्कन हार जाती है, प्यार और रिस्ता हार जाता है| वक्त आपके यकीन को को और मजबूत करता है , कदमों को और ताकत देता है | दिल और हौसले को ऊँचाई का आसमान भी देता है या गर्त में दफन भी कर देता है|

वक्त ही हमे अपने और आकर्षण से बहु रु-ब-रु भी करवाती है| कुछ वक्त ऐसे भी आते है जब स्पर्स की अनुभूति भी भली लगती है | तब हम ये नहीं सोचते है के उस वक्त हम प्रश्न करे या याचना, सहानुभूति दे या सहनुभूति दे, नए रिस्ते की शुरुवात करे या पुराने रिस्तों को समाप्त करे | किसी का बाहें फैला के स्वागत करे या विदा करे | एक पल ऐसा भी आता है जब इंसान वक्त से विद्रोह करने लगता है, एक खिन्न सी हो जाती है अपने वर्तमान या अतीत के गुजरे वक्त से | उसके अंतर्मन में यही कशमकश चलता रहता है जो वक्त था वो अच्छा था या बुरा, जो ख्वाहिशे बिखरी वो अपनी थी या जो हासिल किया वो अपना है |

एक इंसान अपनी ज़िंदगी में चाहे कुछ भी कर ले ….. काम, मेहनत, प्यार हर जगह हर रिस्ता सिर्फ वक्त ही तो माँगता है | जो अपने मेहनत और रिस्तों को वक्त देता हैं वही तो अपनी हथेलियों में ढेरों खुशिया , तजुर्बा और प्यार की दौलत लिए होता है, और जिनके पास ये सारी चीजे है उसे वक्त का गुलाम नहीं होना पड़ता है, बल्कि वक्त उनके अनुसार चलता है

Language: Hindi
Tag: लेख
10 Likes · 2 Comments · 599 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दीवाली विशेष कविता
दीवाली विशेष कविता
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
गुज़ारिश आसमां से है
गुज़ारिश आसमां से है
Sangeeta Beniwal
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
महापुरुषों की सीख
महापुरुषों की सीख
Dr. Pradeep Kumar Sharma
सोच और हम
सोच और हम
Neeraj Agarwal
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
रिसाय के उमर ह , मनाए के जनम तक होना चाहि ।
Lakhan Yadav
जिंदगी को बोझ नहीं मानता
जिंदगी को बोझ नहीं मानता
SATPAL CHAUHAN
कविता -
कविता - "बारिश में नहाते हैं।' आनंद शर्मा
Anand Sharma
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
कवि रमेशराज
7) “आओ मिल कर दीप जलाएँ”
7) “आओ मिल कर दीप जलाएँ”
Sapna Arora
दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
sushil sarna
3358.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3358.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
बंधी मुठ्ठी लाख की : शिक्षक विशेषांक
बंधी मुठ्ठी लाख की : शिक्षक विशेषांक
Dr.Pratibha Prakash
विषय: असत्य पर सत्य की विजय
विषय: असत्य पर सत्य की विजय
Harminder Kaur
लोग अब हमसे ख़फा रहते हैं
लोग अब हमसे ख़फा रहते हैं
Shweta Soni
जब भी लिखता था कमाल लिखता था
जब भी लिखता था कमाल लिखता था
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
"अहसास"
Dr. Kishan tandon kranti
युवा दिवस विवेकानंद जयंती
युवा दिवस विवेकानंद जयंती
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सेवा जोहार
सेवा जोहार
नेताम आर सी
कू कू करती कोयल
कू कू करती कोयल
Mohan Pandey
इस तरहां बिताये मैंने, तन्हाई के पल
इस तरहां बिताये मैंने, तन्हाई के पल
gurudeenverma198
एक ऐसा मीत हो
एक ऐसा मीत हो
लक्ष्मी सिंह
लतियाते रहिये
लतियाते रहिये
विजय कुमार नामदेव
मर्द की कामयाबी के पीछे माँ के अलावा कोई दूसरी औरत नहीं होती
मर्द की कामयाबी के पीछे माँ के अलावा कोई दूसरी औरत नहीं होती
Sandeep Kumar
इश्क़ में ना जाने क्या क्या शौक़ पलता है,
इश्क़ में ना जाने क्या क्या शौक़ पलता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
#सुर्खियों_से_परे-
#सुर्खियों_से_परे-
*प्रणय*
काल चक्र कैसा आया यह, लोग दिखावा करते हैं
काल चक्र कैसा आया यह, लोग दिखावा करते हैं
पूर्वार्थ
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
Manisha Manjari
आपका भविष्य आपके वर्तमान पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप वर
आपका भविष्य आपके वर्तमान पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप वर
Ravikesh Jha
11. *सत्य की खोज*
11. *सत्य की खोज*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
Loading...