* वक्त ही वक्त तन में रक्त था *
* वक्त ही वक्त तन में रक्त था *
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मैं तुम हम थे पर वक्त न था,
मिलने को कभी अनुरक्त न था।
मिला कभी ना वक्त हमें ज़रा,
दो पल मिलूं तुमसे वक्त न था।
हम हो गए थे आज़ाद वक्त से,
मिले न आप,शायद वक्त न था।
मैं तुम दोनों गिरफ्त से बाहर,
व्यस्त वक्त के पास वक्त न था।
वक्त भी था और मैं तुम हम भी,
हसरतों के पास तब वक्त न था,
मनसीरत देखता रहा रात दिन,
वक्त ही वक्त तन में रक्त ना था।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)