वक्त की पालकी में …..
वक्त की पालकी में …..
लौट आओ न !
मेरे शब्दों को सांसें दे दो
हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में
मेरे स्नेहिल शब्द
तुम्हें सम्बोधित करने को
आकुल रहते हैं
गयी हो जबसे
मयंक भी उदासी का
पीला लिबास पहन
रजनी के आँगन में बैठ
तुम्हारे आने का
इंतज़ार करता है
न जाने अपने प्यार के बिना
तुम कैसे जी लेती हो
यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है
तुम बिन हर सांस
अंतिम सांस लगती है
तुम नहीं जानती
तुम्हारी न आने की ज़िद
क्या कहर ढायेगी
जिस्म तो रहेंगे
मगर जान चली जाएगी
रजनी भी मयंक की
उदासी न दूर कर पाएगी
वक्त की पालकी में
ज़िंदगी यूँ ही गुज़र जाएगी
यादों की गर्द में
दिल भी खो जायेगा
ये धड़कन भी खो जायेगी
सुशील सरना