वक्त की नजाकत को समझें ‘ मराठी मानुष ‘ क्या पता, किसे ‘ सजदा ‘ करना पड़ जाए
सुशील कुमार ‘नवीन ‘
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के हेलीकॉप्टर की चुनाव आयोग की टीम द्वारा जांच का मामला इन दिनों पूरा गर्माया हुआ है। हालांकि चुनाव आयोग के अनुसार ये एक सामान्य प्रक्रिया है, जो सभी के साथ होती रही है। इसमें कोई विशेष बात नहीं है। हर चुनाव में यह होता रहा है। आयोग के अनुसार भले ही ये सामान्य प्रक्रिया हो, पर ‘ मराठी मानुष ‘ की 24 घंटे में दो बार की चेकिंग ने पक्ष-विपक्ष के नेताओं की बयानबाजी को पूरी हवा दे दी है।
महाराष्ट्र में कभी पावरफुल रही शिवसेना आज धड़ों में बंटी हुई है। एक झंडे के नीचे बरसों रहे नेता आज अलग झंडा, अलग निशान लिए एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। यह ठीक है कि उद्धव ठाकरे उस शख्शियत (बाला साहब ठाकरे) के उतराधिकारी हैं जिसका बरसों तक महाराष्ट्र में अपना विशेष दबदबा रहा है। ‘ आता माझी सटकले ‘ डायलॉग ‘सिंघम’ फिल्म से 2011 में जरूर मशहूर हुआ था। बाला साहब ठाकरे पर ये डायलॉग शुरू से ही सटीक बैठता रहा था। उन्होंने जो कह दिया, सो कह दिया। मुंबई से लेकर दिल्ली तक उसे मोड़ना या मोड़ने का प्रयास करना सहज नहीं था। बाबरी मस्जिद गिराने पर उनका बयान हो, या भारत-पाक मैच कहीं पर भी न होने देने की बात हो। जो कहा उसे खुलकर कहा। जब तक जिए तब तक अपना दबदबा कम नहीं होने दिया। शिवसेना जितनी मजबूत उनके समय थी वो अब नहीं है। ताकत बंट चुकी है तो कमजोरी होना स्वाभाविक है। प्रकृति का यह नियम भी है कि शिकार हमेशा कमजोर ही बनते हैं। ताकतवर तो शिकार बनाते हैं।
ठाकरे के हेलीकॉप्टर की सोमवार को यवतमाल और मंगलवार को लातूर में जांच की गई। हेलीकॉप्टर में रखे गए पूरे सामान को भी चेक किया गया। वैसे तो जांच प्रक्रिया कोई बड़ी बात नहीं है। बड़े बड़े महानुभावों की जांचें चर्चाओं में रही हैं। एयरपोर्ट पर तो ये एक सामान्य क्रिया है। इलेक्शन टाइम ही ऐसा होता है जब अधिकारी फुल पावर में और नेताओं के हाथ पूरी तरह से बंधे होते हैं। अन्यथा क्या मजाल कोई बड़े से बड़ा अधिकारी जांच करना तो दूर जांच करने की बात ही कह कर दिखाए। ऐसे में ठाकरे साहब को टीम के प्रति नाराजगी नहीं दिखानी चाहिए। जांच में नाराजगी दिखाने से बचकर जांच में उदारता दिखानी चाहिए।
वैसे भी नाराजगी दिखना और नाराजगी दिखाना दोनों में अंतर है। नाराजगी दिखना मौके पर चौके की तरह होती है। समय अच्छा हो तो यह कई गुणा परिणाम देती है। शब्दों के कटुजाल से यदि अपने आपको बचाये रखा तो इससे संबंधों में सुधार के चांस भी बने रहने के आसार रहते हैं। दूसरे मौके पर ही नाराजगी दिखा देना संबंधों में कड़वाहट और बढ़ाने का काम करता है। राजनीति में कौन किस समय दोस्त बनाना पड़ जाए, कब किसे सजदा करना पड़ जाए। किससे गले मिलना पड़ जाए। पता नहीं चलता। ऐसी स्थिति में शब्दों के कटुजाल बहुत परेशानी पैदा करते हैं।
महाराष्ट्र सियासत के प्रमुख ध्रुव रहे उद्धव ठाकरे के साथ इस तरह की घटना पर चर्चाएं भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। चुनाव में यदि कुछ नया न हो तो चुनाव का माहौल नहीं बनता। महाराष्ट्र की राजनीति वैसे भी औरों से हटकर है। यहां ‘ अपने वर्सिज अपने ‘ चुनाव लड़ रहे हैं। गठबंधन टिके रहेंगे, ये कौनसा तय है। चुनाव से पहले और परिणाम के बाद अलग रुख होता है। सामने से नमस्ते करने वाले नजरें चुराते देर नहीं लगाते। क्या पता, किससे हाथ मिलाना पड़ जाए। ठाकरे साहब ऐसे में इसे दिल पर न लें। ‘ आल इज वेल ‘ कहकर इसे एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकारें । प्रतिष्ठा का सवाल न बनाएं। राजनीति में प्रतिष्ठा बनती ओर बिगड़ती रहती है। प्रतिष्ठा लगातार बरकरार रहे, इसके लिए पहले से भी मजबूत होकर दिखाएं। वैसे भी नाराजगी मौके पर ही दिखाने की होती है। चुनाव के माहौल में इससे बचना चाहिए। कई बार ये विपरीत दिशा में चल पड़ती है तो संभालनी मुश्किल हो जाती है। भाजपा को तो बैठे बैठाए शानदार मुद्दा मिल गया है। ठाकरे साहब के एक वीडियो के जवाब में धड़ाधड़ बयानबाजी होने लगी है। बाकायदा चुनाव आयोग की टीम से अपने बड़े नेताओं के वाहनों की जांच के वीडियो अपलोड किए जा रहे है। मशहूर शायर बशीर बद्र ने ठीक कहा है –
दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों।
लेखक;
सुशील कुमार ‘नवीन‘, हिसार
96717 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।