वक्त का आईना
वक्त का आईना
कौन अपना, कौन पराया,
किसने दिल से साथ निभाया।
कब किसने पीठ दिखाई,
कब किसने हंसकर चोट पहुंचाई।
वक्त ने सबकुछ दिखाया,
जो अपना था, उसने पराया बनाया।
जो पराया था, वो संजीवनी बन आया,
सच का आईना वक्त ने दिखाया।
जीवन की राहें कठिनाई से भरी,
हर मोड़ पर नई कहानी गढ़ी।
लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे,
कभी टूटे, कभी जुड़ते रहे।
प्रयासों का फल जरूर मिलता है,
या मंज़िल, या अनुभव साथ चलता है।
दिखावे के रिश्ते फीके पड़ जाते हैं,
सच्चे अपने वक्त पर काम आते हैं।
इसलिए, जीवन में बस चलते रहो,
हर झूठे मुखौटे को पहचानते रहो।
क्योंकि कौन, कब, किसका और कितना अपना है,
ये सिर्फ वक्त ही बताता है