वक़्त के शायरों से एक अपील
शायरी करो तो ब्रेख्त की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो
तुम अपने दौर के तक़ाज़ों पर
मेरे हम-अस्रों, थोड़ा ग़ौर करो…
(१)
अपनी गैरत को मत कुचलो
अपने ज़मीर को मत बेचो
अपने उसूलों से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो फ़ैज़ की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
(२)
जेल जाने के खौफ से या
ईनाम पाने की लालच में
अपने वक़ार से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो जालिब की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
(३)
अपने देश और समाज के
जलते हुए सवालों पर
अपनी ख़ुद्दारी से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो दुष्यंत की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
(४)
मर्सिया लिखो अवाम का
हुक़्काम का कसीदा नहीं
अपने वजूद से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो पाश की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
(५)
अपनी अगली नस्लों के
रोशन मुस्तकबिल के लिए
अपनी ख़ुदी से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो गोरख की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
(६)
सब कुछ देख रहा इतिहास
वह न करेगा हरगिज़ माफ़
अपने ज़ेहन से समझौता
ख़ुदा-रा मत किसी तौर करो
शायरी करो तो अदम की तरह
वर्ना बेहतर है कुछ और करो…
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Shekhar Chandra Mitra
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