वंशी की तान
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वंशी की तान
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साँवरिया ने तान तीर यमुना के जब छेड़ी ,
उठै न आगै पाँव श्याम ने डार दईं बेड़ी ,
चोर चित मुरली नै लीनौ ।
कान्हाँ चैन हमारौ तेरी मुरली ने छीनौ ।।
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तान सुन थम गई पुरवैया,
सुध-बुध अपनी सुन सब भूली हैं भोरी गैया,
लगै ज्यों अमरत बरस रह्यौ ,
नाचै मोर मोरनी कै संग मन में हरष रह्यौ,
धडकनों भूल गयौ सीनौ ।
कान्हाँ चैन हमारौ तेरी मुरली नै छीनौ ।।(१)
–
कूक रही कुंजन कोयलिया ,
मोह रह्यौ राधा कूँ मुरली ते मोहन छलिया ,
ग्वारिया बन इतरावै है ,
डारी बैठ कदम्ब बाँसुरी मधुर बजावै है ,
कृष्ण नै जादू कर दीनौ ।
कान्हाँ चैन हमारौ तेरी मुरली नै छीनौ ।।(२)
–
बाँसुरी बैरन है गई रे ,
कानन में चुपके ते जानै कहा-कहा कह गई रे ,
बसौ मन में मनमोहन है ,
मधुसूदन तेरे अरपन चरनन तन मन धन है ,
तान नै मोहित जग कीनौ ।
कान्हाँ चैन हमारौ तेरी मुरली ने छीनौ ।।
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राधे…राधे…!
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-महेश जैन ‘ज्योति’
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