” लड़ाई हिंदुस्तान – पाकिस्तान की “
प्रथम अनुभव / पहला डर ( संस्मरण )
बात मेरे बचपन सन 1971 की है मैं पाँच साल की थी ( मुझे अपने दो साल की उम्र से सारी बातें याद हैं ) कड़कती सर्दी पड़ रही थी भारत – पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था एक अजीब सा डर का माहौल चारों तरफ फैला था । अम्माँ सुबह अखबार पढ़ती बताती कुछ भी समझ नही आता समझ आता तो बस डर बच्ची थी लड़ाई वो भी बम से इससे ज्यादा डरावनी बात मेरे लिए और कुछ थी ही नही । सारे रौशनदानों में अखबार लगा दिये गये थे कहीं से कोई रौशनी बाहर ना जा पाये । एक रात सायरन बजा ” ब्लैक आउट ” का सारी लाईटें बंद कर दी गईं अम्माँ ने लालटेन जलाई मैंं बहुत डर रही थी मुझे लग रहा था इसकी रौशनी भी बाहर जली जायेगी…सब लोग आपस में बात कर रहे थे मैं रोने लगी मुझे रोता देख अम्माँ ने पूछा ” क्या हुआ रो क्यों रही हो ? ” मैने रोते हुये ही जवाब दिया ” अम्माँ तुम सब लोग बात कर रहे हो तुम लोगों की बात पाकिस्तानी सुन लेगें और मेरे घर पर ही बम गिरा देंगें ” अम्माँ ये सुन कर हँसने लगीं उनकी हँसी देख मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था की यहाँ हम सब बम गिरने से मर जायेगें और अम्माँ हँस रहीं हैं , अम्माँ ने मुझे समझाया की हमारी आवाज उन तक नही पहुँचेगी लेकिन मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था बस एक ही रट लगाये बैठी थी की ” कोई भी बात मत करो और करनी भी है तो रजाई के अंदर घुस कर करो…नही तो पाकिस्तानी हमारे घर पर बम गिरा देगें ” आज भी जब वो घटना याद करती हूँ तो हँसी आती है लेकिन बचपन था और उस वक्त वो डर का एहसास इतना जबरदस्त था की मैं उसको शब्दों में बयां नही कर सकती ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/10/2020 )