लौट ही जाना था…
आईनें को जब भी देखा
चेहरा कोई अनजाना था
अपनी शक्ल देखे कैसे
जो देखा, सब बेगाना था…
सुनो, रुको, ठहरो
आवाज दी, रोज़ उसे मैंने
मगर, हर हाल में उसे तो
लौट ही जाना था…
जिसे अपनी दौलत समझकर
गुमाँ करते रहे हम
वो बस ख्वाबों का
पुलिंदा पुराना था…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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