लौट के आओगे जब…
तन्हाई में जब
खुद से बात होती है अक्सर
अश्क बह जाते हैं
जो पलकों पे थे रुके रुके से,,
माना कि जिंदगी में तेरी
हम रखते नहीं मुकाम
ख्वाब में तो लेकिन
न रहो यूं कटे कटे से,,
दिल के अरमान
जलके हो गए फना सब
कुछ ज़ख्म रह गए लेकिन
सुलगे अधबुझे से,,
मसीहा समझ के उनको
हम करते रहे वफ़ा
बेवफ़ाई के कायिल वो
चल दिए दबे छुपे से,,
लौट कर आओगे
इसी दर पे इक रोज़
फिर कहेंगे फिर सुनेंगे
लफ्ज़ जो रह गए अनकहे से,,,,,
नम्रता सरन “सोना”