लौट कर फिर से
बदले कितने
यहाँ ज़माने हैं।
ढरें ज़िंदगी के
बही पुराने हैं ।।
लौट कर फिर से
आ न सके ।
मौसम बचपन के
वो सुहाने हैं ।।
वक़्त-ए-मुश्किल में
हर लम्हा हमको ।
हौसले खुद के
आज़माने हैं ।।
ज़िंदगी हमको दे
ज़रा मोहलत ।
खुद से वादे
कई निभाने हैं ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद