लौट आना वहीं – कोमल अग्रवाल की कलम से
लौट आना वहीं पर थे बिछड़े जहां
गर तुम्हें मेरी यादें रुलाने लगें।
क्यूँ न हिमखंड तपकर पिघल जाएगा
गर्म सूरज जो उसको जलाने लगे।
लौट आना वहीं पर थे बिछड़े जहां
गर तुम्हें मेरी यादें रुलाने लगें।
मेरे नयनों में प्रतिबिम्ब तेरा वही
नींद करती है अक्सर बसेरा वहीं,
मैं अमावस हूँ जो फिर ढली ही नहीं
तुम मेरी रात का हो सवेरा वही,
तोड़कर आइनों को चले आना तुम
बदशक्ल तुमको जो ये दिखाने लगें।
लौट आना वहीं पर थे बिछड़े जहां
गर तुम्हें मेरी यादें रुलाने लगें।
मैं जलाती रही चाहतों का दिया
फूँककर रख गई चार दिन की हवा
मुझसे बेहतर मिले लोग मुमकिन है ये
पर ठहरता नहीं देर तक है धुआँ
नाम होंठों पे लाकर के देखो मेरा
हिचकियां तेज तुमको जो आने लगें।
लौट आना वहीं पर थे बिछड़े जहां
गर तुम्हें मेरी यादें रुलाने लगें।
मौसमी प्यार कह जिसको ठुकरा दिया
जो चिरंतन है सच उसको झुठला दिया
तुम ग़लत कल भी थे हो ग़लत आज भी
क्या समझते हो तुमको है बिसरा दिया?
भूल जाने का फन हो मुबारक तुम्हें
हमको तो भूलने में ज़मानें लगें।
लौट आना वहीं पर थे बिछड़े जहां
गर तुम्हें मेरी यादें रुलाने लगें।